नई दिल्ली (यथार्थ गोस्वामी): दुर्गा पूजा (Durga Puja) के पांचवे दिन माँ के स्वरूप को स्कंदमाता (Skandamata) रूप में पूजा जाता है। माता की कृपा दृष्टि होने से मूढ़ व्यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। कहा जाता है कि माँ की कृपा से ही महाकवि कालिदास की रचना रघुवंशम और मेघदूत संभव हो पायी थी। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण माँ के इस स्वरूप का नाम स्कंदमाता पड़ा। स्कंद माता की चार भुजायें है दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से माँ ने कुमार कार्तिकेय (स्कंद कुमार) का थाम रखा है। नीचे वाली में कमल का पुष्प सुशोभित है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। माँ को पद्मासना, गौरी और माहेश्वरी आदि नामों से भी जाना जाता है। माता स्कंद सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी है। इस कारण उनके श्रीमुख पर कांति और तेज बना रहता है।
माँ दुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की पूजा विधि
चौकी पर आसन बिछाकर स्कंदमाता की तस्वीर या विग्रह का स्थापित करे। माँ की पूजा का मानस संकल्प लेते हुए माँ के इन मंत्रों का जाप करें ॐ देवी स्कन्दमातायै नमःऔर ॐ स्कन्दमात्रै नम:।।’ तदोपरान्त पूजा स्थल की शुद्धि गंगा जल या गोमूत्र से करें। ग्राम देवता, कुलदेवता, नवग्रह, नक्षत्रों और दिग्पालों का आवाह्न करें। सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥ मन्त्र का जाप करते हुए पूजा आरम्भ करें। तांबे या मिट्टी के घड़े में स्वच्छ जल भरकर उस पर श्रीफल स्थापित करें। घड़े पर सात बार सिंदूर की बिंदी लगाये। माँ की गोद में भगवान कार्तिकेय का बाल स्वरूप विराजमान है। भगवान कार्तिकेय को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ स्कन्दमात्रै नम:।। का जाप 21 बार करें। ये मंत्र संतान प्राप्ति के लिए अमोघ माना जाता है। माँ को पूजन सामग्री अर्पित करते हुए “ब्रीं स्कन्दजनन्यै नम:” का जाप करे। माँ की कृपा से उपासकों को यशस्वी संतान की प्राप्ति होती है। षोडशापचार पूजन विधान संपन्न करने के बाद या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।मंत्र का जाप करते हुए पूजा का पारायण की ओर ले जाये। अन्त में भोग प्रसाद का वितरण करें। गोधूलि वेला में स्कंदमाता का मानस ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करे।
ॐ ऐं श्रीं नम: दुर्गे स्मृता हरसि भीतिम शेष-जन्तोः,
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।
दारिद्रय दुख भय हरिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता नमो श्रीं ॐ।।
स्कंदमाता का स्रोत पाठ
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
स्कंदमाता का ध्यान करने के लिए जाप मंत्र
वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्
धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।
अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्
पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।
प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्घ् स्तोत्र
नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।
समग्रतत्वसागर अपरमपार पारगहराम्
शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्
महेन्द्रकश्यपाद्दचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।
सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्
मुमुक्षुभिद्दवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।
नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।
सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।
सुधाद्दमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्
शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।
तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्
सहस्त्रसूर्यराजिकांधनच्जयोग्रकारिकाम्।
सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमच्जुलाम्
प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।
स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्
इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।
पुनरूपुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराद्दचताम् जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्
स्कंदमाता कवच
ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।
हृदयंपातुसा देवी कातिकययुताघ्
श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।
सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदाघ्
वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।
उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतुघ्
इन्द्राणी भैरवी चौवासितांगीचसंहारिणी।
सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवैघ्