शोषण के कारण महिला IAS officer नौकरी छोड़ने को मजबूर

नई दिल्ली (शौर्य यादव) : हरियाणा देश का ऐसा राज्य बनता जा रहा है, जहाँ प्रशासनिक अधिकारियों (Administrative Officers) को प्रताड़ित की रस्मों रवायते जोरों पर है। हरियाणा कैडर के वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका (Senior Bureaucrat Ashok Khemka) का किस्सा तो पूरे देश में मशहूर है। उन्होनें 27 सालों के कार्यकाल में 52 तबादले झेले जो कि सीधे तौर पर मानसिक उत्पीड़न है। अब प्रशासनिक जोर-ज़बरदस्ती की सुई अशोक खेमका के साथ एक ओर महिला आईएएस अधिकारी की ओर घूमती नज़र आ रही है।

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले से ताल्लुक रखने वाली महिला प्रशासनिक अधिकारी रानी नागर ने फेसबुक पर लिखा कि, वो अपने पद से इस्तीफा देना चाहती है। अभी वह अपनी बहन रीमा नागर (Reema Nagar) के साथ चंडीगढ़ में लॉकडाउन (Lockdown) की वज़ह से फंसी हुई है। लॉकडाउन खुलने के बाद वे सरकारी नियमानुसार अपने कार्यालय से इस्तीफा देगी।

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रानी नागर (Rani Nagar) हरियाणा सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में अतिरिक्त निदेशक और अभिलेखागार विभाग में निदेशक (अतिरिक्त प्रभार) के पद तैनात है। साल 2019 के दौरान रानी नागर ने सुनील के. गुलाटी और चंडीगढ़ पुलिस के कुछ अधिकारियों पर चंडीगढ़ की सीजीएम कोर्ट (CGM Court of Chandigarh) में केस संख्या 3573/19 दर्ज करवायी। फेसबुक पर जारी रानी नागर के बयान के मुताबिक उन्हें और उनकी बहन को उन लोगों से बेहद खतरा है, जिनके खिल़ाफ मामला दर्ज करवाया है। ऐसे यदि दोनों की जान को खतरा होता है या फिर दोनों लापता पायी जाती है तो इसके लिए वे सभी लोग जिम्मेदार होगें। जिनके विरूद्ध उन्होंने मामला दर्ज करवाया गया है। इसके साथ ही उन्होनें फेसबुक (Facebook) पर लोगों से अपील करते हुए इस बयान को चंडीगढ़ सीजीएम कोर्ट में पहुँचाने की गुज़ारिश की है।

महिला अधिकारी को मिल रही धमकियों के मद्देनज़र गुर्जर समाज़ में खासी नाराज़गी देखी जा रही है। तकरीबन सभी मीडिया प्लेटफॉर्मस पर लोग इसकी आलोचना कर रहे है।

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जिस तरह से महिला अधिकारी को धमकियां मिल रही है, उसे देखते हुए लगता है कि खट्टर सरकार (Khattar government) के राज में प्रशानिक अराजकता (Administrative Chaos) जोरों पर है, वरना एक महिला प्रशासनिक अधिकारी को यूं सोशल मीडिया पर गुहार ना लगानी पड़ती। अगर सूबे में महिला अधिकारी ही सुरक्षित नहीं है तो आम आदमी राज्य सरकार से क्या अपेक्षा रखेगा। मामले में पीएमओ (PMO) को तुरन्त ही हस्तक्षेप करना चाहिए। हालिया तस्वीर को देखते हुए लगता है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao Beti Padhao) का नारा अभी भी खोखला है। अगर बेटी पढ़कर अधिकारी बन भी जाये तो भी वो सुरक्षित नहीं है।  

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