Islamic new year muharram 2020: चांद निकलने के साथ होगी मुहर्रम की शुरूआत

नई दिल्ली (उबैदुल्लाह जैदी): इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों (Imam Hussain and his followers) की शहादत की याद में मनाया जाने वाला त्यौहार मुर्हरम (muharram) की शुरूआत इस बार कोरोना के साये के बीच 21 अगस्त या 22 अगस्त को हो सकती है। जिसके तहत ये त्यौहार 29 या 31 अगस्त तक मनाया जाएगा। इस्लामी कैलेंडर (Islamic calendar) में जिलहिज के महीने की आखिरी तारीख को चांद दिखते ही पुराना साल विदाई की पर आकर रुखसत हो जाता है और अगले दिन यानी मोहर्रम की पहली तारीख से इस्लामी नया साल शुरू हो जाता है। इस साल 2020 में 21 अगस्त शुक्रवार से नया साल शुरू हो रहा है और 30 अगस्त को यौमे-आशुरा का दिन होगा। साथ ही इस बार देश की तकरीबन सभी अंजुमन कमेटियों ने ताज़िया (मतमा जलूस) ना निकलने का कड़ा फैसला लिया है। जिसकी वज़ह से कर्बला में कोई भीड़ नहीं होगी। सोशल डिस्टेसिंग और कोरोना गाइडलाइन्स का सख्ती से पालन किया जायेगा। साथ ही शहर के प्रमुख चौराहों पर फातेहा खानी की स्स्म अदायगी की जायेगी। इस दौरान सद्भावपूर्ण माहौल के बीच एकता भाईचारे और सादगी के साथ सभी की भावनाओं का खयाल रखते हुए त्यौहार की रस्मों को पूरा किया जायेगा।

इस बार ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Shia Personal Law Board) आगामी शुक्रवार को जुलूस और मजलिस से जुड़ी अपनी अलग-अलग एडवाइजरी जारी करेगा। बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास (Maulana Yasub Abbas) ने मीडिया को बताया कि, सरकार व प्रदेश सरकार की गाइडलाइन के मद्देनज़र अजादारों को कर्बला के शहीदों को पुरसा पेश करना होगा। मौजूदा हालातों को देखते हुए मजलिस और जुलूस कैसे निकाला जाये, इसके लिए देशभर के उलेमाओं से रायशुमारी की जा रही है। अगर मजलिस के आयोजन की इजाजत मिलती है तो, वहाँ आने वाले लोगों को मास्क बांटे जाएंगे। साथ ही नज्र व तबर्रुक में पैक्ड चीजे ही बांटी जाएंगी। इस मौके पर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली (Maulana Khalid Rashid Farangi Mahli) ने कहा कि, गम के महीने को भी ईद-उल-फित्रर, ईद-उल-अज्हा की तरह स्थानीय प्रशासन की ओर से बनाई गई गाइडलाइन के अनुसार ही मनाने की अपील की जा रही है।

इस्लामिक इतिहास (Islamic history) के पन्नों में दर्ज घटनाओं के मुताबिक, इराक (वर्तमान में सीरिया) में यजीद नाम का बेरहम बादशाह था। जिसने खुद को कथित खलीफा घोषित कर रखा था। उसकी आस्था और कार्यशैली इस्लामिक परम्पराओं (Islamic traditions) के एकदम विपरीत थी। यजीद तहेदिल से चाहता था कि, हजरत इमाम हुसैन अपने अनुयायियों संग उनके कबीले में शामिल हो जाये। हजरत इमाम हुसैन को उसका ये रवैया कतई नाकाबिले बर्दाश्त था। अहं और वर्चस्व को बनाये रखने के लिए यजीद ने हुसैन के खिलाफ कर्बला की जमीं पर मोर्चा खोल दिया। जहां इस्लाम की राह पर अटल इमाम हुसैन और उनके परिवार समेत सभी अनुयायियों को बेरहमी से शहीद कर दिया गया। हजरत इमाम हुसैन को अस्र की नमाज के वक्त जब वे खुदा का सजदा कर रहे थे, तब उन्हें शहीद किया गया। मुहर्रम के महीने की 10वीं तारीख को ये ऐतिहासिक घटना घटी। हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 ज़ाबांज अनुयायियों की शहादत की याद में ये त्यौहार मनाया जाता है।

मोहर्रम के दौरान रोजे रखने की स्थापित इस्लामिक परम्परा है। हालांकि मोहर्रम के दौरान इस्लामिक अनुयायियों को रोजे रखने की कोई बाध्यता नहीं होती है। अगर कोई मुसलमान रोजे रखता है तो ठीक है। सुन्नी समुदाय (Sunni Community) के लोगों द्वारा मोहर्रम महीने की 10वीं तारीख को रोजे रखने का प्रावधान हैं। ऐसा माना जाता है कि, मोहर्रम के दौरान एक रोजा रखने का स़वाब (पुण्य) 30 रोजों के बराबर होता है।

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