अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरानी अर्थव्यवस्था की टूटी कमर, Nuclear program बना गले की फांस

न्यूज़ डेस्क (दिगान्त बरूआ): ईरान का परमाणु कार्यक्रम (Iranian Nuclear program) खुद ईरानी अर्थव्यवस्था के लिए भस्मासुर बनता दिख रहा है। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो (Mike Pompeo) ने संयुक्त राष्ट्र के सत्र को संबोधित करते हुए ईरान पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहले लगाये प्रतिबंधों को दोबारा लागू करने की अपील की थी। ईरानी राष्‍ट्रपति हसन रुहानी (Iranian President Hassan Rouhani) ने माइक पोंपियो की इस अपील को खाऱिज कर दिया। जिसके बाद तेहरान पर आर्थिक दबाव एकाएक बढ़ गया। नतीजन बीते रविवार को ईरानी रियाल की कीमत डॉलर के मुकाबले औधें मुँह गिरी दिखाई दी। रियाल अपने न्यूनतम स्तर पर दर्ज किया गया।

इस दौरान डॉलर की मुकाबले रियाल की कीमत 272,500 दर्ज की गयी। अमेरिक द्वारा की गयी आर्थिक नाकेबंदी के कारण रियाल की सीधे 30 फीसदी की गिरावट आयी। साथ ही वाशिंगटन के कारण तेहरान अपने तेल भंडार की बिक्री खुले वैश्विक बाज़ार में नहीं कर पा रहा है। साल 2015 के दौरान तत्कालीन ओबामा प्रशासन की अगुवाई में हुए परमाणु समझौते के दौरान डॉलर के मुकाबले रियाल की कीमत 32,000 थी। वाशिंगटन के मुताबिक ईरान ज्वॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव एक्शन प्लान (Joint Comprehensive Action Plan) के नियमों का पालन करने में नाकाम रहा है। दूसरी ओर 13 साल से ईरान पर सुरक्षा परिषद (security Council) द्वारा लगाये गये हथियार के प्रतिबंध आगे नहीं बढ़ पाये। इसलिए ये अमेरिकी कवायद दुनिया को ज्यादा महफूज रख पायेगी।

सुरक्षा परिषद के अन्य देशों (जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस) ने अमेरिका के इस निर्णय को खाऱिज कर दिया। उनके मुताबिक साल 2018 के दौरान जब ईरान परमाणु समझौते से बाहर (Iran out of nuclear deal) निकल गया तो ऐसे में इस तरह के फैसले लेने का हक़ अमेरिका को हासिल नहीं है। ये अमेरिकी कदम बेमतलब और बेबुनियादी है। प्रस्ताव खारिज करने वाले तीनों देशों ने अपनी बात खत लिखकर सिक्योरिटी काउंसिल के चेयरमैन (Chairman of Security Council) तक पहुँचा दी है। ठीक यहीं बात तेहरान भी दोहरा रहा है कि अमेरिकी ऐलान का बेअसर और खोखला है।

पेंटागन के मुताबिक- अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को जारी रखा हुआ है। यूरेनियम संवर्धन करने की उनकी क्षमता में काफी इज़ाफा (Significantly increase uranium enrichment capacity) हुआ है। उत्त्तर कोरियाई मदद से वो इस साल के आखिरी तक परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल कर लेगा। हालांकि पेंटागन ने अपने दावे को पुख़्ता करने के लिए कोई सबूत सार्वजनिक नहीं किये है।

जिस रफ्तार से अमेरिकी राष्ट्रपति अरब देशों और इजरायल की दोस्ती करवा रहे है। उससे उन्हें राष्ट्रपति चुनावों में बढ़त मिलना तय है। कहीं ना कहीं उनकी छवि शांतिदूत वाली बनी है। दूसरी ओर अरब, बहरीन और इजरायल की दोस्ती मिडिल ईस्ट की स्थायी शांति में ईरानी खलल (Iranian disturbed in permanent peace of Middle East) डाल सकती है। अनुमान है कि आने वाले दिनों में अमेरिकी ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध और भी कड़े कर सकता है। ईरान को इजरायल की अरबी मुल्कों से दोस्ती कहीं ना कहीं खुद के लिए बड़ा खतरा लग रही है। ऐसे में टूटती अर्थव्यवस्था के बीच तेहरान अपने परमाणु कार्यक्रम का बदस्तूर जारी रखने की जुगत में रहेगा।

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