Hartalika Teej Vrat 2020: हरितालिका तीज से जुड़ी काम की बातें, जानिये पूजनविधि, महात्मय, कथा और श्रेष्ठ मूहूर्त

नई दिल्ली (यर्थाथ गोस्वामी): भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत (Hartalika Teej Vrat 2020) का विशेष वैदिक महात्मय है। इस वर्ष यह व्रत 21 अगस्त 2020 के दिन पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड और राजस्थान में इस व्रत का खास महत्त्तव है। व्रत के प्रभाव से महिलाओं को माँ पार्वती से अखंड सौभाग्यवती होने का अमोघ आशीर्वाद मिलता है। इस दिन महिलायें माता पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधानपूर्वक आराधना और व्रत रखती है। सनातन परम्परा (Eternal tradition) के अनुसार यदि कुंवारी कन्यायें इस व्रत का पालन शास्त्रोक्त ढंग से करती है तो, उन्हें इच्छित वर की प्राप्ति के विवाह संयोग बनते है। एक बार व्रत का पालन और पारायण करने के बाद इसका पालन जीवन भर करना पड़ता है। किसी कारणवश कोई महिला व्रत रख पाने में असमर्थ है तो उसके स्थान पर ये व्रत उसका पति रखा सकता है। परन्तु अगले वर्ष व्रती महिला को इसे जारी रखना चाहिए।

हरतालिका तीज का व्रत काफी कठिन है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं 24 घंटे से भी अधिक समय तक निर्जला व्रत का निर्वहन करती है। रात्रि जागरण कर माँ पार्वती (Goddess Parvati) और भगवान शंकर (Lord Shankar) के मंगल भजनों का गायन होता है और भोर में शास्त्रीय विधि सम्मत तरीके से पूजा-पाठ करने के बाद ही व्रत का समापन होता है।

हरितालिका तीज का प्रात: पूजन का शुभ मुहूर्त

सुबह 5 बजकर 54 मिनट से सुबह 8 बजकर 30 मिनट तक।

गोधूलि वेला में हरितालिका तीज पूजन का शुभ मुहूर्त

शाम 6 बजकर 54 मिनट से रात 9 बजकर 6 मिनट तक।

तृतीया तिथि का आरम्भ

21 अगस्त की रात 02 बजकर 13 मिनट से।

तृतीया तिथि की समाप्त एवं व्रत का पारायण

22 अगस्त रात 11 बजकर 2 मिनट तक।

 मंत्र

‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ (इस मंत्र के साथ व्रत का संकल्प ले)

माँ गौरी की आराधना के लिए मंत्र

ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना के लिए मंत्र

ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम:

व्रत कथा

हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन (Reunions of Lord Shiva and Goddess Parvati) के उपलक्ष्य में प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। लोककथाओं के अनुसार माँ गौरी ने भोलेनाथ को वर स्वरूप प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। उनका अटल निश्चय देखकर उनके पिता हिमालय काफी परेशान हुए। इस बीच महर्षि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती के लिए विवाह प्रस्ताव लेकर आये। जब माँ पार्वती को इस बात का पता चला तो वे काफी व्यथित हुई। और अपने मन की व्यथा एक सखी से कह सुनायी। मां पार्वती की सहेली उन्हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं ताकि उनके हिमालय भगवान विष्णु से उनका विवाह न करा पाएं। वन में रहने के दौरान देवी पार्वती और अधिक दुष्कर साधना में लीन हो जाती है। भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (Tritiya date of Shukla Paksha in Bhadrapada) के दिन हस्त नक्षत्र में माँ पार्वती रेत का पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की अखंड साधना करते हुए रात्रि जागरण करती है। देवी पार्वती की इस कड़ी साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव उन्हें दर्शन लाभ देते है। साथ ही इच्छित वरदान प्रदान करते हुए पार्वती का पत्नी रूप में वरण प्रस्ताव स्वीकार करते है।

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