Guru Purab-2019 गुरूपुरूब 2019- सो सतगुरु प्यारा मेरे नाल हैं, जिथे किथे मैनु लै छडाइ

श्री गुरूनानक देव जी का 550 वां प्रकाशोत्सव

मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत। मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥

साल 1469 में मानवता को एक नयी राह दिखाने के लिए पहली पातशाही श्री गुरूनानक का अवतरण कार्तिक पूर्णिमा के दिन रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव में खत्री कुल परिवार में हुआ। बहन का नाम नानकी होने के कारण माता-पिता स्नेहवश श्री गुरू जी को नानक कहकर संबोधित करते थे। इनका बचपन आम बच्चों से बेहद अलग रहा। ईश्वरीय चिंतन, भगवद् भजन, ज्ञान, ध्यान इनके चित्त का हिस्सा बन रहा। पिता जी श्री गुरू जी को व्य़ापार करने भेजते थे तो गिनती में तेरह-तेरह करते ईश्वरीय सत्ता के ध्यान में लीन हो जाते थे। गुरू जी के आध्यात्मिक ज्ञान को देखते इनके अध्यापक इनके सामने नतमस्तक हो जाते थे। श्री गुरूनानक की दिव्यता को देखते हुए समस्त लोगों अभिभूत थे। 16 वर्ष की आयु श्री गुरू का विवाह माता सुलक्षणा के साथ हुआ कालांतर में गुरू जी को दो पुत्र रत्नों का प्राप्ति हुई। इस साल श्री गुरूनानक जी का 550 वां प्रकाशोत्सव मनाया जा रहा है। ऐसे तेज रफ्तार से भागती मानवता को थोड़ा थमकर उनकी शिक्षायें पर गौर कर उन्हें आत्मसात करना चाहिए। 

“अव्वल अल्लाह नूर उपाया , कुदरत के सब बन्दे !
एक नूर ते सब जग उपज्या ,कौन भले कौन मंदे !! ” 

श्री गुरूनानक देव जी ईश्वरीय तत्व प्राप्ति के लिए ज्ञान और प्रेम दोनों को ही सम्मान रूप से मान्यता देते थे। ऊंच-नीच जाति-पाति और छुआ-छूत को दूर करने के लिए उन्होनें ‘गुरु का लंगर’ जहाँ सभी जाति, मज़हब, कौम, नस्ल के लोग पंक्ति में बैठ लंगर छकते थे। लंगर स्वयं में एक सांकेतिक संदेश का वहन करता है, संदेश ये है कि ईश्वर की निगाह में सब एक बराबर है। 

नीचा अंदर नीच जात, नीची हूं अति नीच।
नानक तिन के संगी साथ, वडियां सिऊ कियां रीस॥

एक बार की बात है। श्री गुरूनानक देव जी बाला, मरदाना और दूसरे अनुयायियों सहित एक गांव में पहुँचे वहाँ के लोग गुरू जी मखौल उड़ाने लगे उनकी आलोचना करने लगे। आतिथ्य सत्कार करना तो दूर उन्हें तिरस्कृत करने लगे। गुरू जी ने मुस्कुराकर सभी गांव वालों को आशीष दिया कि मिल जुलकर एक साथ रहो, खूब आबाद रहो। अगले गांव पहुँचने पर वहाँ ग्रामवासियों ने गुरू जी का आदर सत्कार किया। सेवा और आतिथ्यभाव में कोई कमी नहीं छोड़ी। गुरू जी उनकी भक्ति, प्रेम और समर्पण देखकर उन्हें आशीष दिया कि तुम सब उजड़ जाओ, टूटकर बिखर जाओ। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए विरोधाभासी आशीर्वाद को देखकर सारे अनुयायी और शिष्य स्तब्ध और आश्चर्यचकित थे। गुरू जी ने उनके चेहरे पर तैर रहे है। विस्मय और प्रश्नों को पहचान लिया। और कहा कि जड़मति और अज्ञानी लोगों अगर एक ही जगह रहे तो ठीक है। अगर वो यहाँ वहाँ जायेगें तो अपने दुर्गुणों से दूसरों को भी संक्रमित कर देगें। ऐसे उन लोगों को एक ही जगह इकट्ठा होकर रहना मानवता के लिए उचित है। दूसरी सद्गुणी लोग यदि टूटकर बिखरकर इधर उधर जाते है तो इससे मानवता का ही कल्याण होता है। वो अपने साथ सद्गुण ले जाते है, जिससे ये दूसरो लोगों में फैलता है। श्री गुरू जी आशय अब सभी शिष्यों को समझ में आ जाता था। इस तरह से शिष्यों को संशय समाप्त हुआ।

नानक जंत उपाइके, संभालै सभनाह।
जिन करते करना कीआ, चिंताभिकरणी ताहर॥

श्री गुरू जी ईश्वरीय ज्योति में विलीन होने से पहले लंबी-लंबी यात्रायें की, जिन्हें उदासियों के नाम से जाना गया। इस कारण गुरू जी के लेखन में वैविध्यता देखने को मिलती है। फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी, संस्कृत और ब्रजभाषा भाषा के शब्द सहज़ की गुरू जी की वाणी में आलोकित है। बोलचाल की भाषा इस्तेमाल करने के कारण श्री गुरूनानक जी की अमृतवाणी आम लोगों में सीधे पहुँचती है। तिब्बत में गुरू जी को नानक लामा के नाम से भी जाना जाता है।

दया कपाह संतोख सूत जत गंढी ससत वट ॥
इह जेनऊ जीय का हई त पांडे घत॥
न इह न मल लगै न इह जलै न जाए॥
धन सु माणस नानका जिन गल चला पाए ॥

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