Coronavirus – बढ़ रहे वायरस इन्फेक्शन के माहौल में कानूनी पक्ष

आगरा पुलिस द्वारा भारत में कोरोना प्रकोप के मद्देनज़र पहली शिकायत/एफ.आई.आर.दर्ज की गई। इसके तहत एक रेलवे अधिकारी ने अपनी 25 वर्षीय बेटी जानकारी अधिकारियों से छुपाई, जो कि संदिग्ध तौर पर COVID-19 से संक्रमित थी। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 269 और 270 के तहत मामला दर्ज किया गया।

सभी देशों की न्यायिक व्यवस्था में मेडिकल आपातकाल से जुड़े मामलों में त्वरित और ठोस निर्णय लेने के खास प्रावधान होते हैं। भारत में आपदा और मेडिकल आपातकाल के लिए महामारी अधिनियम-1897 के प्रावधान लागू होते हैं। कोरोना वायरस इन्फेक्शन (Coronavirus Infection) के बढ़ रहे खतरे के मद्देनजर महामारी अधिनियम को लागू किया गया है।

महामारी रोग अधिनियम (1897), कोरोना जैसी महामारी की रोकथाम और प्रसार रोकने के लिए केंद्रीय स्तर पर काम करने वाला मुख्य लेजिस्लेटिव स्ट्रक्चर है। इस अधिनियम के section 10 के मुताबिक  केंद्र शासित प्रदेशों और सभी राज्य सरकारों को बंदरगाहों समेत सभी एंट्री-एग्जिट प्वाइंट पर पूरी तरह से नियंत्रण का अधिकार हासिल है।

संविधान के मुताबिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य एक राज्य विषय है, पर भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत समवर्ती सूची या सूची- III 52 के अनुसार राज्य और केंद्र दोनों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त है, जो उन्हें सशक्त बनाते हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 अप्रैल 2020 को महामारी रोग अधिनियम, 1897 में नए संशोधन करते हुए एक अध्यादेश को मंजूरी दी।


इस अध्यादेश में डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मचारियों के खिलाफ हिंसा को गैर-जमानती अपराध भी घोषित कर दिया गया है। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करता है तो, उसे 6 महीने से 7 साल तक कारावास के प्रावधान सुनिश्चित है। यदि मामले में कोई दोषी पाया जाता है तो, हिंसा करने वालों से नुकसान पहुंचाई हुई संपत्ति की लागत का दुगना भुगतान वसूला जाएगा। साथ ही अभियुक्तों को 3 महीने से 5 साल की सजा मुकर्रर की जाएगी और 50,000 रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक का भारी जुर्माना भी लगाया जायेगा। ऐसे मामलों में जांच 30 दिनों के भीतर की जाएगी।

आजादी मिलने के बाद यह पहला अवसर है, जब देशभर में सब कुछ थम सा गया है। SARS CoV-2 बड़ा खतरा बनकर उभरा है। बेशक आज लॉकडाउन वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। इन हालातों के बीच संवैधानिक वैधता और मूलभूत अधिकारों को लेकर कई बड़े सवाल खड़े होते हैं।

“व्यवस्थापिका और कार्यपालिका भारत में स्वतंत्र तौर पर अस्थाई रूप से मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लागू कर सकती है।”

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि, निजता का अधिकार जीवन के अधिकार का एक महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन यह पूर्ण नहीं है और इसे अपराध या अव्यवस्था को रोकने के लिए या फिर स्वास्थ्य, नैतिकता या दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रतिबंधित किया जा सकता है।

इस महामारी के हालातों के दौरान आम नागरिकों को संबंधित अधिकारियों द्वारा जारी इन नियमों के उल्लंघन के लिए दंडित किया जा सकता है-घर से बाहर कदम रखना और स्वतंत्र रूप से घूमना, या सार्वजनिक स्थान पर मास्क नहीं पहनना। कोविड-19 पॉजिटिव रोगियों के बारे में भ्रामक जानकारी प्रदान करना या स्वास्थ्य देखभाल करने वाले पेशेवरों के साथ सहयोग नहीं करना, क्वारंटाइन के नियम को तोड़ना, यात्रा इतिहास और स्वास्थ्य लक्षणों को छिपाना, चिकित्सा कर्मचारियों के साथ अनुचित व्यवहार, आपदा महामारी आदि के बारे में फर्जी खबरें आपको जेल में डाल सकती हैं।

दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में अधिकारियों ने पहले से ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 144 लागू कर दी है, जो ज्यादा लोगों को एक जगह एकत्रित होने पर रोक लगाती है।

आइए उन सेक्शन को जानें जिसके तहत किसी व्यक्ति द्वारा लॉक डाउन तोड़ने और प्रशासकीय आदेशों की अवहेलना करने पर एफआईआर की सकती हैं-

IPC की धारा 188-कोई भी जो किसी भी नियम या आदेश की अवज्ञा करता है, तो उस पर छह महीने के लिए कारावास या 1000/- रुपये का जुर्माना, या दोनों के लिए भी नामजद किया जा सकता है – संज्ञेय (पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है कोई भी मजिस्ट्रेट- गैर-जमानती शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत वापस नहीं ली जा सकती)

IPC की धारा 269 -इस तरह की कोई भी लापरवाही जिससे खतरनाक बीमारी का संक्रमण फैलने की संभावना हो। ऐसे में आरोपी को 2 साल तक कारावास, या जुर्माना, या दोनों-संज्ञेय- जमानती- किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई योग्य और गैर जमानती है।

IPC की धारा 270- इस तरह का कोई भी घातक कार्य जिससे  खतरनाक बीमारी के संक्रमण के फैलने की संभावना हो, आरोपी या आरोपित संस्थान को 2 साल के लिए कारावास, या जुर्माना, या दोनों-संज्ञेय-जमानती – किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई योग्य- गैर जमानती

IPC की धारा 271- क्वारंटाइन के नियम की अवज्ञा करने पर   6 महीने से दो साल के लिए कारावास या जुर्माना या दोनों गैर-संज्ञेय-जमानती- किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल करने योग्य

(हाल ही में U.P पुलिस ने सिंगर कनिका कपूर पर 188, 269 और IPC की धारा 270 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज की थी)

दिल्ली पुलिस अधिनियम की धारा 65 – (पुलिस अधिकारियों के उचित निर्देशों का पालन करने के लिए आम नागरिकों द्वारा बाध्यता। पुलिस इस धारा का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है)

विभिन्न एफआईआर भी दिल्ली पुलिस अधिनियम के अंडर सेक्शन 66 के तहत की गयी, भारी तादाद में वाहन जब़्त किए गए। (ये धारा वाहनों पर लगाई जाती हैं)

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 – बाधा पहुंचाने के लिए सजा, आदि – जो भी उचित कारण बनते हो-

(ए) इस अधिनियम के तहत किसी अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी कर्मचारी को आपदा के दौरान उनके कर्तव्यों को पूरा करने से रोकता है, या व्यवधान उत्पन्न करता है

(ख) इस अधिनियम के तहत अधिकारियों द्वारा दिए गए किसी भी निर्देश को मानने से इन्कार करने या उनके काम में बाधा डालने को दोषी हो तो उस पर कानूनन कार्रवाई की जा सकती है। इस धारा के तहत ऐसे व्यक्ति को एक साल की कैद और जुर्माना लगाकर दंडित किया जा सकता है। सजा दो साल तक बढ़ सकती है।
 
किसी भी संदेश को बनाने, पोस्ट करने, साझा करने और फॉरवर्ड करने से पहले ये याद रखना चाहिए कि, यदि वह वायरस के बारे में अफवाह फैलाता है जिससे कि बड़ी आबादी के बीच खौफ और आतंक की स्थिति की वज़ह बनता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 54- अफवाह के लिए सजा —अगर किसी आपदा की परिस्थति के दौरान कोई अफवाह या निराधार खबर फैलाता है, जिससे लोगों के बीच घबराहट फैले, हड़बड़ी का माहौल बने तो इस धारा के तहत उस पर कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसा करने की कोशिश करने वालों को भी दंडित किया जा सकता है। इसकी सजा एक साल तक जेल और जुर्माना है।

भारतीय कानूनी संहिता, 1860 की धारा 505 (1): ऐसा कोई  भी बयान, अफवाह या रिपोर्ट को बनाना, प्रकाशित करना या प्रसारित करना जो आम जनता के लिए या आम जनता के किसी भी वर्ग के लिए भय या चेतावनी पैदा कर सकती हो। इसके अर्न्तगत 3 साल कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

डेटा प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 डी: अपनी पहचान छुपाकर कंप्यूटर की मदद से किसी के व्यक्तिगत डाटा तक पहुंचना अधिनियम का उल्लंघन करने वालों को 3 साल तक कारावास की सजा दी जा सकती है। गंभीर मामलों में एक लाख रुपए तक का हर्जाना भी वसूला जा सकता है।

ऐसे वक्त में नागरिकों सिर्फ एक ही सहायता मिल सकती है और ये है कि जहां भी है वही रहे। और कानून का पालन करे जरूरत पड़ने पर अपने संबंधित राज्यों और अधिकारियों द्वारा साझा किए गए आपातकालीन नंबरों पर कॉल करे।

हिंदी अनुवादक- ज्योति एस. मलिक

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