राम मंदिर के बाद भी मोदी सरकार के पास हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों की कमी नहीं

9 नवंबर 2019 को जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया तो ये मान लिया गया कि देश की सर्वोच्च अदालत ने दशकों से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर पूर्ण विराम लगा दिया है। लेकिन 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद गिराए जाने की बरसी के मौके पर सुप्रीम कोर्ट में एक—दो नहीं बल्कि चार पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। जानकारों का कहना है कि ये याचिकाएं केवल याचिकार्ताओं के निजी हितों के चलते दायर की गई हैं और इस मुद्दे को कुछ और दिन जिंदा रखने की कोशिश मात्र हैं। हालांकि इस बात की संभावना न के बराबर है कि इन याचिकाओं पर विचार करके सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में कोई बदलाव करे। ऐसे में विवादित जमीन पर राम मंदिर बनना तो लगभग तय ही है लेकिन कहा जा रहा है कि अब भाजपा सरकार के लिए इस मुद्दे पर राजनीति करने के सारे रास्ते बंद हो गए हैं। 


कई राजनीतिक विश्लेषकों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि अब मोदी सरकार हिंदुत्व के अपने एजेंडे पर ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएगी क्योंकि राम मंदिर का मुद्दा इस एजेंडे का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था, जोकि अब खत्म हो गया है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? जवाब है नहीं… बिल्कुल नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि राम मंदिर का निर्माण हिंदुत्व से जुड़े सबसे बड़े मुद्दों में से एक रहा है और आज भाजपा सत्ता के जिस शिखर पर है उसके पीछे राम मंदिर मुद्दे का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन ये कहना सही नहीं होगा कि अब हिंदुत्व से जुड़ा कोई बड़ा मुद्दा रहा ही नहीं। 
यहां दो बातें समझने की जरूरत है। पहली बात ये कि हिंदुत्व का दायरा केवल अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण तक ही सीमित नहीं है। दूसरी बात, हिंदुत्व मोदी सरकार का कोई घोषित एजेंडा नहीं है। फिर भी, अगर हिंदुत्व की ही बात कर ली जाए तो हिंदुत्व की झोली में अभी भी कई बड़े मुद्दे बाकी हैं। अभी ऐसे कई बड़े मसलों पर काम किया जाना बाकी है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व से जुड़े हुए हैं। 

चाहे तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में लाना हो, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35ए को खत्म करना हो या फिर एनआरसी लागू करना हो, इन सबका हिंदुत्व से सीधे तौर पर कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन ये सभी मामले अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व से जुड़े हुए ही हैं। इसी तरह समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून और धर्मांतरण विरोधी कानून आदि कुछ ऐसे विषय हैं जो कहीं न कहीं हिंदुत्व से ताल्लुक रखते हैं और भाजपा सरकार इन पर अब आगे बढ़ सकती है। 

मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले छ: महीनों से भी कम समय में ही तीन तलाक, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर जैसे बड़े एवं जटिल मुद्दों को निपटा दिया। यह अप्रत्याशित एवं सराहनीय है। इस लिहाज से देखें तो अभी सरकार के पास लगभग साढ़े चार साल का कार्यकाल बचा है, जिसमें बहुत कुछ हो सकता है। किसी भी बड़ी योजना या कार्य को अंजाम देने के लिए सरकार के पास पर्याप्त समय है। लिहाजा आने वाले दिनों में सरकार की तरफ से कुछ और बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। 

मोदी सरकार द्वारा बड़े फैसले लेने की सम्भावना इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि वर्तमान स्थिति सरकार के लिए जितनी अनुकूल है उससे ज्यादा बेहतर स्थिति आने वाले समय में होगी। भाजपा और राजग के पास लोकसभा में तो अभी भी प्रचंड बहुमत है लेकिन राज्यसभा में राजग अभी बहुमत के आंकड़े से दूर है। इसके बावजूद सरकार तीन तलाक और अनुच्छेद 370 जैसे जटिल मुद्दों से सम्बंधित विधेयकों को पारित कराने में सफल रही। राजग धीरे धीरे राज्यसभा में भी बहुमत की ओर बढ़ रहा है। आने वाले समय में जब राजग के पास संसद के उच्च सदन में भी बहुमत होगा तो सरकार के लिए समान नागरिक संहिता जैसे मसलों पर आगे बढ़ना आसान हो जाएगा। 

मीडिया के माध्यम से लगातार ख़बरें आ रही हैं कि सरकार समान नागरिक संहिता, धर्मांतरण विरोधी कानून, नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर काम कर रही है और जल्द ही इन्हें अमलीजामा पहनाया जा सकता है। इनमें से नागरिकता संशोधन बिल को तो कैबिनेट की मंजूरी भी मिल चुकी है और अगले एक—दो दिन में इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा। वर्तमान में चल रहे संसद के शीतकालीन सत्र का सिर्फ एक हफ्ता बचा है। सरकार इसी सत्र में इस बिल को संसद के दोनों सदनों में पास कराना चाहेगी। यदि ये दोनों विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित हो गए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार जल्द ही समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ती नज़र आएगी। ऐसे में इस सत्र का यह आखिरी हफ्ता काफी महत्वपूर्ण होगा। 

कुल मिलाकर बात यह है कि भाजपा सरकार के पास हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों की कोई कमी नहीं है लेकिन 2014 के बाद से भाजपा की राजनीति बदली है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सरकार की थीम थी सबका साथ, सबका विकास। दूसरे कार्यकाल में सबका साथ, सबका विकास में सबका विश्वास भी जोड़ा गया है। ऐसे में यह कहना कि राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के बाद मोदी सरकार के पास हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए मुद्दे नहीं रहे हैं, सही नहीं है।

– अमित त्यागी
स्वतन्त्र पत्रकार

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